✍️ बिना TET समायोजन: न्याय के विरुद्ध प्रयोग
(लेखक: राहुल पांडे 'अविचल')
माननीय सर्वोच्च न्यायालय में स्टेट ऑफ तमिलनाडु एवं अन्य बनाम आर. वरुण एवं अन्य की विशेष अनुज्ञा याचिका में इंटरवेंशन एप्लीकेशन दाखिल करने के बाद मैंने सोचा था कि शायद अब संघर्ष को विराम मिल जाएगा। इससे पूर्व लखनऊ में तीन रिट याचिकाएं और इलाहाबाद में एक विशेष अपील दाखिल कर चुका था।
परंतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने में विलंब होने के कारण अब यह देखने को मिल रहा है कि प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक का समायोजन उच्च प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर हो रहा है। जबकि यदि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय पहले आ जाता तो उसी की रोशनी में इन प्रधानाध्यापकों को उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक के पद पर पदोन्नति मिल सकती थी।
इसीलिए नैतिक रूप से मुझे एक बार फिर इलाहाबाद और लखनऊ में रिट दाखिल करनी पड़ रही है। सत्य यह है कि अब मैं स्वयं को इन तमाम मामलों से अलग करना चाहता हूँ, परंतु परिस्थितियाँ बार-बार मुझे रोक लेती हैं।
जिस संघर्ष की शुरुआत करूं, उसका न्यायपूर्ण और संतुलित समापन करना मेरे लिए केवल कानूनी नहीं बल्कि नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है।