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20 July 2022

आदरणीय बेसिक शिक्षा सचिव जी महोदय जी के लिए एक शिक्षक की पोस्ट

 आदरणीय बेसिक शिक्षा सचिव जी महोदय जी के लिए एक शिक्षक की पोस्ट


आदरणीय
बेसिक शिक्षा सचिव जी
महोदय जी,
माना आप बेसिक शिक्षा परिषद के बदलाव का सूत्रधार बनना चाहते हैं। ये भी माना कि निरंतर हो रहे नवाचार कि बदौलत, आप बेसिक शिक्षा परिषद की छवि बदलते के लिए संकल्पबद्ध हैं। इसके लिए आपको बधाई देने के साथ-साथ धरातल से जुड़े कुछ प्रश्नों या कह ली लिए समस्याओं से अवगत कराना चाहता हूं। आशा है आप इन समस्याओं का समाधान भी ढूढ़ निकालेंगे।
(1) जैसा कि आपको ज्ञात है कि आम ग्रामीण जनमानस से लेकर विभाग के अधिकारियों और यहां तक अन्य विभाग के कर्मचारी इस पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं कि बेसिक के शिक्षक या तो अनुपस्थिति रहते हैं या समय से विद्यालय नहीं आते हैं।
महोदय, इस तथ्य को मैं पूरी तरह नकार नहीं सकता। लेकिन क्या किसी ने कभी इस समस्या की तह तक जाकर, इसके कारण को समझने की कोशिश की है? या बस इस मनोवृत्ति का शिकार होकर कि 'शिक्षक लापरवाह और कर्तव्यनिष्ठ नहीं होते' संतुष्ट हो जाते हैं।
पूर्व में ऐसा रहा होगा मुझे नहीं पता लेकिन वर्तमान समय में जब इतनी खींचातानी और चेकिंग हो रही है। तो शायद ही कोई शिक्षक होगा जो रोज समय पर विद्यालय नहीं आना चाहता होगा। या इतने सारे लक्ष्य बच्चों के लिए निर्धारित किए गए हैं तो उनको पढ़ाना नहीं चाहता होगा। लेकिन ऐसा न हो पाने का कारण मैं आपको बताता हूं।
ज्यादातर शिक्षक उत्तर प्रदेश के दूर दराज ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालय में पोस्ट हैं। हालत ये है कि ऐसे क्षेत्रों मे शिक्षक किराए पर कमरा लेकर रहना चाहे तो नहीं रह सकते क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी सुविधा है ही नहीं। मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे कई शिक्षक साथियो को जनता हूं जो ब्लॉक स्तर पर भी सेपरेट बाथरूम वाले कमरें न मिलने के कारण निराश होकर बाहर से आने को मजबूर हो गए हैं। ग्रामीण स्तर पर मुश्किल से ही कोई घर होंगे जो किराए पर देना चाहेंगे। ऐसे में कल्पना करिए की कोई महिला शिक्षक भला कैसे सुरक्षित और स्वाभिमान पूर्वक ग्रामीण क्षेत्र में किराए पर रह कर नौकरी कर सकती है, जहां ढंग के शौचालय भी नहीं उपलब्ध हैं।
आपको क्या लगता है कि ये वैन से या बाइक से वाले शिक्षकों को इसमें मज़ा आता है ! ये शिक्षक खास कर महिला शिक्षक सुबह 4 बजे उठकर, अपने घर का काम निपटाकर, पांच बजे तक तैयार होकर जल्दी से वैन पकड़ती हैं, फिर ये वैन वाले या बाइक वाले शिक्षक अपनी गाड़ियों को अमेरीका के राष्ट्रपति वाले जहाज (एयर फोर्स वन) की गति से भागकर स्कूल पहुचने की कोशिश करते हैं। आपके पास यदि आंकड़े हो तो कृपया उनको उठाकर देखें..न जाने कितने शिक्षक शिक्षिकाओं ने समय पर विद्यालय आने की जल्दी में अपने प्राण गंवाए हैं। और ये आकड़े दिन पर दिन बढ़ ही रहे हैं। आख़िर इनकी असमय हत्या ( मेरी दृष्टि में तो यही है) की जिम्मेदारी किसकी है?
(2) महोदय, एक शिक्षक मात्र एक शिक्षक भर नहीं है। वो एक पिता है..एक बेटा है..एक जिम्मेदार पति या पत्नी है। कहने का मतलब है कि उनके ऊपर अपने परिवार की जिम्मेदारी है। ऐसे में वो मात्र चौदह CL की बदौलत पूरे साल अपनी समस्त जिम्मेदारियों का निर्वहन कैसे कर सकते हैं? कभी डॉ के पास जाना पड़ सकता है। कभी बच्चे के स्कूल जाना पड़ सकता है..कभी किसी आवश्यक रिश्तेदारी में जाना पड़ सकता है। ऐसी अनेकों जिम्मेदारियां हैं जो आवश्यक होती हैं।
अब गर्मी की छुट्टियों या जाड़े की छुट्टियों को लेकर रुदालियो की तरह सीना पीट-पीट कर रोने वाले बहुत लोग मिल जाएंगे कि,"हाय! इतनी छुट्टियां तो मिलती हैं..और क्या चाहिए!" लेकिन महोदय मैं इन अवकाश को "विशेष समय तक प्राप्त प्रतिबंधित अवकाश" की दृष्टि से देखता हूं। इनसे हमारा कोई विशेष भला नहीं हो रहा। न हम इनकी मांग ही करते हैं। आप हमको राज्य कर्मचारियों की तरह 31 EL और अन्य सुविधाएं प्रदान कर दीजिए..हमें ग्रीष्मकालीन अवकाश की आवश्यकता नहीं है।
ये कुछ वैसा ही है कि जब जरूरत नहीं तो मुह चीर के पानी भर दो और जब आवश्यकता हो तो बिना पानी के प्यासा मार दिया जाए।
(3) बहुत सी ऐसी परिस्थितियां होती हैं जो एक बाहरी शिक्षक के वश से बाहर होती हैं। लेकिन देखने में आया है कि ऐसे ही कुछ असाध्य कारणों को ध्यान में रखकर शिक्षकों पर कार्यवाही हो रही हैं। महोदय, आप विश्वास मानिए, जो भी कार्य शिक्षकों को दिया जाता है और अगर वो उसे करने में सक्षम हैं तो वो उसे जरूर करने की कोशिश करते हैं। लेकिन अगर कार्य ही उनकी पहुंच से बाहर हो तो ऐसे में वो मात्र काग़ज़ भरने..खाना पूर्ति करने को मजबूर हो जाते हैं।


यही समस्त जिम्मेदारियों को एक शिक्षक के ऊपर थोप कर पल्ला झाड़ लिया जाएगा तो कैसे काम होगा। बच्चे स्कूल न आए तो शिक्षक जिम्मेदार..अभिभावक ड्रेस का पैसा खा जाए तो शिक्षक जिम्मेदार..बच्चे धान लगाने, गेहूं कटाने, आदि काम को लेकर सत्र भर गायब रहें तो शिक्षक जिम्मेदार..बच्चों का परिजन आधार न बनवाये तो शिक्षक जिम्मेदार..आधार में नाम गलत हो तो शिक्षक जिम्मेदार..अभिभावकों के खाते में पैसा न जाये तो शिक्षक जिम्मेदार। आदि-आदि कारणों से यदि मात्र शिक्षको का शोषण होगा तो कैसे काम चलेगा?
(4) नवाचार के नाम पर शिक्षकों का जो ये नवरंग अचार बनाया जा रहा है। इसपर भी ध्यान देने की जरूरत है।कहीं "एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय" वाला हाल न हो जाये। रोज-रोज whatsapp के माध्यम से नए-नए आदेश विभाग उनपर थोप रहा है। पुराने आदेश का क्या हुआ..इससे कोई मतलब नहीं। ये मोबाइल शिक्षकों के लिए गले की हड्डी साबित हो रहा है। कहीं DM ऑफिस से फोन..कहीं विभागीय कार्य को लेकर कॉल आ रही हैं। ये शोषण नहीं तो क्या है?
(5)महोदय, अंत में बस इतना कहना है कि जिस तरह आधुनिक समय में किसी कंपनी में कार्यरत कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उस कंपनी की है। और ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे कार्य की गुणवत्ता बनी रहती है। उसी तरह का एक सर्वे बेसिक में अपरिहार्य हो गया है। शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य का स्तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है। स्कूल आने की जल्दी, विभागीय दबाव, घूसखोर और दलालों का शिकंजा, टिटपुजिया छाप पत्रकारों से हो रहा शोषण आदि अनेक ऐसे कारक हैं जिनसे एक शिक्षक अपना मानसिक स्वास्थ्य खो रहा है। रही सही प्रमोशन और अन्तरजनपदीय स्थानांतरण जैसी भौतिक चीजों का लालच भी उन शिक्षकों को है। 8 साल से प्रमोशन के इंतजार में इनकी आखें बुढ़ी हो गई हैं। 7 साल से घर परिवार मासुम बच्चो को छोड अकेली महिला शिक्षिकाये अनजान जगह भय भरे मन से सेवाये दे रही है।
महोदय, ये छोटी-छोटी खुशियो से खुश होने वाले लोग हैं। ये अपने वेतन का सत्तर प्रतिशत हिस्सा होम लोन, पर्सनल लोन में चुकाने वाले लोग हैं। ये अपने दिन का अच्छा खासा हिस्सा ऊबड़ खाबड़ सड़कों पर चलकर बिताने वाले लोग हैं।ये आपके हर आदेश को सर झुकाकर मानने वाले लोग हैं। और सच कहूँ तो ये आपके अपने ही लोग हैं। कभी गौर करके इनके भी दर्द का मूल्यांकन करवाने का कष्ट करें।

कापी पेस्ट पोस्ट


 


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