Primary Ka Master: एक अध्यापक की कलम से एम. डी. एम. बवाल ए जान, शिक्षको के लिए एक अच्छी पोस्ट
एक अध्यापक की कलम से
*एम. डी. एम. बवाल ए जान ......*
साथियों
सादर नमस्कार, आप अच्छे होंगे यह हमारी ईश्वर से प्रार्थना है, और तेजी से बदलते हालातों में आप कैसे होंगे इसको हम आसानी से महसूस कर पा रहे हैं। विद्यालय समय से पहले पहुंचना और 2:30 बजे के बाद छोड़ना, पूरा मन लगाकर बच्चों की पढ़ाई करना अपने आप में और समाज की नजर में एक अच्छी बात है। वहीं दूसरी तरफ प्रधानाध्यापकों से बिना बजट उपलब्ध कराएं तमाम कार्यों को और वह भी विद्यालय समय के बाद कराना प्रधानाध्यापकों के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गया है। रसोई की संपूर्ण व्यवस्था करना और वह भी प्रातः काल 8:00 बजे से पहले अपने आप में एक बड़ी मुसीबत है, बुधवार के दिन ग्रामीण इलाकों में गाय और भैंस का दूध 8:00 बजे से पहले खोज कर एकत्र करना, सोमवार के दिन प्रातः 8:00 बजे से पहले ताजे फल इकट्ठा करना एक बहुत बड़ी चुनौती भरा कार्य है। यदि कोई प्रधानाध्यापक अपने विद्यालय से 20 किलोमीटर दूर गांव में रहता है और उसके गांव के आसपास कोई भी फल मंडी नहीं है, ऐसे में वह प्रधानाध्यापक कितने बजे उठ करके किस फल मंडी में जाएगा, और वहां से फल खरीद कर किस वाहन के द्वारा विद्यालय तक 8:00 बजे से पहले पहुंचाएगा, क्योंकि 15 या 20 किलो सुरक्षित फल ले कर जाना कोई मामूली काम नहीं है जिसे कोई शिक्षक अपने झोले में रख कर के ले जा सके। लेकिन इस पर आज तक कभी भी किसी अधिकारी/सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया है। ग्रामीण आंचल में रहने वाले शिक्षकों को अक्सर संडे के दिन(जो उसके व्यक्तिगत कार्यों के लिए होता है) फल खरीदने के लिए एक दूसरे व्यक्ति को साथ लेकर मंडी जाना पड़ता है और बिना किसी ट्रांसपोर्ट खर्च के वह लाता है । शिक्षक को यह भी पता नहीं होता कि आज विद्यालय में कितने बच्चे आने वाले हैं जितने फल खरीदे जा सके। यदि दुर्भाग्य से दो चार फल कम पड़ गए तो समझो अध्यापक पर एक नई मुसीबत तय हो जाती है। फल का अथवा अन्य सामग्री का जो पैसा मिलता है वह कम से कम 3 या 4 महीने बाद दिया जाता है वह भी काफी कम मात्रा में। अब मान लीजिए यदि किसी अध्यापक के पास आर्थिक कमजोरी है तो वह कैसे इन सब की व्यवस्था करेगा क्योंकि दुकानदार को तो नगद पैसा चाहिए। उधर प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के साथ आंगनवाड़ी के नन्हे मुन्ने बच्चे जिनका विद्यालय में नाम नहीं होता है वह भी चले आते हैं, अक्सर मजबूरी में अध्यापकों को उनको भी एमडीएम खिलाना ही पड़ता है और यदि नहीं खिलाता है तो गांव वालों से लड़ाई झगड़ा होना तय है और अगर ज्यादा बच्चे दिखाता है तो अधिकारियों द्वारा कार्यवाही तय है। दूसरी तरफ अधिकारी लोग जरा जरा सी बात पर कमी निकालते हैं, दिन भर में अनेकों बार कठोर चेतावनी, अक्षम्य कार्रवाई, वेतन रोकने, इत्यादि धमकी भरे मैसेज व्हाट्सएप द्वारा प्रातः 5:00 बजे से लेकर रात्रि 11:00 बजे तक भेजते रहते हैं। 1 दिन में पता नहीं व्हाट्सएप पर कितने मैसेज प्राप्त होते हैं और कहा जाता है कि प्रत्येक मैसेज को कम से कम 2 बार पड़े। अब आप सोचिए कि एक शिक्षक चौबीसों घंटे में कितने समय मानसिक रूप से स्वतंत्र रह सकता है ? अगर सभी मैसेज और आदेश जिन को व्हाट्सएप पर पढ़ना बहुत मुश्किल भरा होता है, को वह दो बार पड़ेगा तो कम से कम 4 घंटे तो उसको पढ़ने के लिए ही चाहिए। 8:00 से 2:30 बजे तक विद्यालय में रहेगा उसके अतिरिक्त संपूर्ण दावत की व्यवस्था, सभी विद्यालय कार्यों को निपटाना, बिना बजट के मजदूरों को बुलाकर निर्माण कार्य कराना बिना बजट और सफाई कर्मचारी के विद्यालय/शौचालय की नियमित साफ सफाई करना क्या एक शिक्षक को गुलामी जैसा जीवन जीने के लिए मजबूर किया जा रहा है ? हद तो तब हो जाती है जब ग्राम पंचायत सचिव/प्रधान के अधूरे कार्यों को पूरा कराने की भड़ास शिक्षकों पर उनके वेतन रोकने की धमकी देकर निकाली जाती है। हालांकि ग्राम पंचायत के ऊपर शिक्षक तो क्या किसी भी शिक्षा अधिकारी का वश नहीं चलता।
वर्ष में एक बार कमपोजिट ग्रांट प्राप्त होती है और उसी ग्रांट के साथ एक लंबी सी क्रय सूची दे दी जाती है। एक निश्चित समय सीमा के भीतर उस संपूर्ण कंपोजिट ग्रांट को खर्च करने का अधिकारियों द्वारा पूरा दबाव बनाया जाता है। गत वर्षों में देखने को मिला है कि ज्यादातर शिक्षकों ने कमपोजिट ग्रांट से ऊपर जाकर खर्च किया है। लेकिन उसके बाद शिक्षकों को आए दिन फोटोस्टेट, कंप्यूटर कार्य, सफाई कार्य, निर्माण कार्य, स्टेशनरी कार्य, बीआरसी से विद्यालय तक अनेकों बार ढुलाई कार्य करने में हजारों रुपए अपनी जेब से खर्च करने पड़ते हैं। और सबसे बड़ी मुसीबत तो तब बन जाती है कि जब शिक्षक को यह कार्य स्कूल समय के बाद देर सबेर रात विरात करना पड़ता है और हर समय धमकी भरे मैसेज सुनने पड़ते हैं। कई काम तो ऐसे भी हैं जो विद्यालय समय के बाद नहीं किए जा सकते जैसे बैंकिंग कार्य। लेकिन फिर भी तमाम लोगों पर कार्यवाही के नाम पर उनसे हजारों रुपए की लूट की जाती है।
साथियों
अगर आपको हमारी बात में सच्चाई नजर आ रही है तो इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा फॉरवर्ड करें और मांग करें कि -
शिक्षकों को एमडीएम से पूरी तरह दूर रखा जाए। प्रधानाध्यापकों/शिक्षकों से शिक्षण के अतिरिक्त बिना बजट दिए अन्य कार्य करने के लिए दबाव ना बनाया जाए। कंपोजिट ग्रांट को खत्म कर दिया जाए/पंचायत को सौंप दिया जाए अथवा उसे आवश्यकता के अनुसार पूरे साल में खर्च करने की व्यवस्था की जाए। किसी भी प्रकार के सफाई, निर्माण, विद्यालय कायाकल्प के कार्य से प्रधाना अध्यापक/शिक्षक को मुक्त रखा जाए।
जय शिक्षक
जय भारत।